चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य कौन थे? जिन्होंने पूरे विश्व को जीत लिया था । जानिए इनके बारे में

 चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य कौन थे?

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य कौन थे?


🌹🔥 ओ३म् 🔥🌹

🌹चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य🌹

परमपिता परमेश्वर को नमन करते हुए सभी आर्य विद्वानों को सादर नमस्ते जी।


आज हम आर्यवर्त के इतिहास के अत्यंत गौरवपूर्ण व महान सम्राट के बारे में चर्चा करेंगे जिन्होंने उस समय लगभग पूरे विश्व को जीत लिया था और चक्रवर्ती शासन स्थापित किया था वह थे सम्राट विक्रमादित्य।


बड़े ही शर्म की बात है कि महाराज विक्रमादित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया(धन धान्य से पूर्ण) बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था ।


आप सभी पाठकगणों से लेख को पूर्ण अवश्य पढ़ें व इस महान सम्राट के व्यक्तित्व से प्रेरणा ले भारत के गौरव को पुनः स्थापित करने हेतु पुरुषार्थ करें।


🌹विक्रमादित्य का जन्म🌹


कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। महाराजा विक्रमादित्य का सविस्तार वर्णन भविष्य पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है।


विक्रमादित्य ईसा मसीह के समकालीन थे और उस वक्त उनका शासन अरब तक फैला था। विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में भी वर्णन मिलता है। नौ रत्नों की परंपरा उन्हीं से शुरू होती है। विक्रमादित्य उस काल में महान व्यक्तित्व और शक्ति का प्रतीक थे, जबकि मुगलों और अंग्रेजों को यह सिद्ध करना जरूरी था कि उस काल में दुनिया अज्ञानता में जी रही थी। दरअसल, विक्रमादित्य का शासन अरब और मिस्र तक फैला था और संपूर्ण धरती के लोग उनके नाम से परिचित थे। विक्रमादित्य भारत की प्राचीन नगरी उज्जयिनी के राजसिंहासन पर बैठे। विक्रमादित्य अपने ज्ञान, वीरता और उदारशीलता के लिए प्रसिद्ध थे जिनके दरबार में नवरत्न रहते थे। कहा जाता है कि विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी थे और उन्होंने शकों को परास्त किया था।


देश में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं। इस संवत के प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विदाभरण ग्रंथ से होती है, जो कि 3068 कलि अर्थात 34 ईसा पूर्व में लिखा गया था। इसके अनुसार विक्रमादित्य ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया। नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है। अन्य सम्राट जिनके नाम के आगे विक्रमादित्य लगा है : यथा श्रीहर्ष, शूद्रक, हल, चंद्रगुप्त द्वितीय, शिलादित्य, यशोवर्धन आदि। दरअसल, आदित्य शब्द देवताओं से प्रयुक्त है। बाद में विक्रमादित्य की प्रसिद्धि के बाद राजाओं को 'विक्रमादित्य उपाधि' दी जाने लगी।


उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली ।


🌹विक्रमादित्य का राज्य🌹


आज का वर्तमान हिन्दू कलेंडर विक्रम संवत २०७७ अर्थात २०७७ साल पहले सम्पूर्ण विश्व पर एक सत्य सनातन धर्मी चक्रवर्ती क्षत्रिय सम्राट का अविभाज्य शासन था जिनकी वीरता का सही सही अनुमान उनके राज्य का क्षेत्रफल देखकर ही लगाया जा सकता है।

आज का पूरा 

भारत,पाकिस्तान,अफगानिस्तान,तजाकिस्तान,उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान,तुर्की,अफ्रीका,सऊदी अरब,नेपाल, थाईलैंड, इंडोनेशिया, कमबोडिया, श्रीलंका,चीन का बड़ा भाग इन सब प्रदेशो पर विश्व के बड़े भूभाग पर था ओर इतना ही नही सम्राट विक्रमादित्य ने रोम के राजाओं को हराकर विश्व विजय भी कर लिया था।


🌹श्लोक🌹

"यो रूमदेशाधिपति शकेश्वरं जित्वा " ।।

🌹अर्थ🌹

उन्होंने रोम के राजा और शक राजाओं को जीता सब मिलाकर 95 देश जीतें आज भारत मे डेमोक्रेसी है, लेकिन भारत में शांति नही है लेकिन इस डेमोक्रेसी की नींव डालने की शुरुवात ही खुद महान क्षत्रिय परमार वंश के राजपूत राजा विक्रमादित्य ने की थी विक्रमादित्य की सेना का सेनापति प्रजा चुनती थी।


वह प्रजा द्वारा चुना हुआ धर्माध्यक्ष होता था प्रजा द्वारा अभिषिक्त निर्णायक होता था आज के समय मे अमरीका और रूस के राष्ट्रपति की जो शक्ति है वही शक्ति महाराज विक्रमादित्य के सेनापति की होती थी।


लेकिन यह सब भी अपना परम् वीर विक्रम को ही मानते थे महाराज विक्रम ने भी अपने आप को शासक नही, प्रजा का सेवक मात्र घोषित कर रखा था।


पहला शक राजा मॉस था उसने ईसा की सदी से पूर्व गांधार को जीत लिया था इसके बाद सम्भवतः एजस नाम का राजा बैठा अब शक आगे बढ़े, इनका विस्तार पंजाब तक हो गया इसके बाद दो शक राजा और हुए यह लोग सीथियन लोगो को भेजकर गर्वनर प्रणाली से शासन चलाते थे इनकी शक राजाओं से प्रेरित गर्वनर लोग " क्षत्रप " कहलाते थे।


इन सीथियन गर्वनरों ने तक्षशिला से लेकर मथुरा तक राज किया है इन्होंने केवल यही तक संतोष नही किया, यह विंध्यांचल पार कर दक्षिण की ओर भी बढ़े यही कारण है की मालवा ओर गुजरात प्रदेश के आसपास विक्रम को क्षत्रपों से लड़ना पड़ा था और क्षत्रप वीर विक्रम से बहुत बुरी तरह मार खाकर भागे थे।


इन क्षत्रपों की एक शाखा दक्षिण में गौतमीपुत्र सातकर्णी से लड़कर मार खाई थी उस समय नेहपान दक्षिण पर आधिपत्य जमाये बैठा था उसका राज्य कोंकण, महाराष्ट्र, मंदसौर, मालवा से राजस्थान के पुष्कर तक फैला हुआ था ईसा की दूसरी सदी में गौतमीपुत्र सातकर्णी ने नेहपान पर आक्रमण कर उसके राज्य को सातकर्णी साम्राज्य में मिला लिया था।


उज्जैन में उन दिनों चपटन नाम का क्षत्रप राजा था जिसने सातवाहन को जीतकर उसे अपने राज्य में मिला लिया था उसके बाद उनके ही पुत्र गौतमीपुत्र सातकर्णी ने चपटन के बेटे नेहपान को परास्त कर उसके पूरे राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।


विक्रमादित्य मालव राजपूत जाति से थे जो आज परमार कहलाते है हरिवंश पुराण में इन्हें चन्द्रवँशी क्षत्रिय कहा गया है यह लोग बड़े ही बलवान,पराक्रमी ओर वैभवशाली लोग कहे जाते थे।


कौरव पांडव के बीच जब महाभारत का युद्ध हुआ था तो इस वंश के राजाओं ने कौरव पक्ष का साथ दिया था यतार्थ में मालव लोग मलवंशीय क्षत्रिय है अब भी मल्ल तथा शाही वंश के कुछ परिवार नेपाल की तराई में रहते है इतनी शताब्दी से वहां गरीबी की मार है फिर भी वहां के क्षत्रियो का रहन सहन अन्य लोगो को अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्ठ है वे आज भी अपने आप को सबसे ऊंचा मानते है।


वे लोग भी बड़े पराक्रमी ओर वीर है मल्ल की व्याख्या से ही प्रतीत होता है कि कुश्ती लड़ने वाला शूरवीर कृष्ण महाभारत, बलदेव कुश्ती से समझा जाये तो इस वंश को समझने में ज़रा भी देर नही लगेगी।


नेपाल के मल्ल पंजाब से नेपाल गए थे ओर पंजाब के मल्ल ही राजपुताना आये थे अपनी जाति की याद को हमेशा जीवित रखने के लिए उन्होंने अपने राज्य का नाम मालवा कर लिया उज्जैयनी में मालव जाति के पहले राजा गन्धर्वसेन हुये है ये पहले मालव राजा है जिन्होंने अपने राज्य को अपनी भुजाओं के बल पर बढ़ाया गन्धर्वसेन के बाद उनके ज्येष्ठपुत्र भृतहरि सेन गद्दी पर बैठे किंतु कुछ काल के बाद विरक्त होकर इन्होंने नाथ पन्थ की दीक्षा ले ली।


यह वहीं भृतहरि है जिन्होंने बाद में " वैराग्य शतक " नीति शतक " सृंगार शतक " नामक प्रसिद्ध शतश्लोकों ओर काव्यों की रचना की है भृतहरि के बाद ऐतिहासिक वीर विक्रम सेन गद्दी पर विराजमान हुए थे इन्होंने ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी में राज किया था।


विक्रमादित्य ने शको हूणों को मारकर उन्हें अरब तक खदेड़ दिया और शकारि की उपाधि ग्रहण की।उन्होंने अरब में मक्केश्वर महादेव की स्थापना की थी।उनको अरब साहित्य और इतिहास में भी खूब याद किया जाता है।कहा जाता है कि तत्कालीन रोमन सम्राट को भी उन्होंने बन्दी बना लिया था और उसे उज्जैन की सड़कों पर घुमाया था।

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🌹सम्राट विक्रमादित्य का गौरव व वीरता🌹


महाराज विक्रम बहुत ही शूरवीर और दानी थे शुंग वंश के बाद पंजाब के रास्ते से शकों ने भारत को तहस नहस कर दिया था लेकिन वीर विक्रम ने इन शकों को पंजाब के रास्ते से ही वापस भगाया पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के बाद जो हिन्दू असंगठित होकर शकों का शिकार हो रहे थे उन हिंदुओ को जीवन मंत्र देकर महाराज विक्रम में विजय का शंख फूंककर पूरे भारत को संगठित कर दिया ।।


महाराजा वीर विक्रम जमीन पर सोते थे अल्पाहार लेते थे केवल योगबल पर अपने शरीर को व्रज सा मजबूत बनाकर रखते थे इन्ही ने महान सनातन राष्ट्र की स्थापना कर सनातन धर्म का डंका पुनः बजाया था।


उनकी पांच पत्नियां थी, मलयावती, मदनलेखा, पद्मिनी, चेल्ल और चिल्लमहादेवी। उनकी दो पुत्र विक्रमचरित और विनयपाल और दो पुत्रियां प्रियंगुमंजरी (विद्योत्तमा) और वसुंधरा थीं।


गोपीचंद नाम का उनका एक भानजा था। प्रमुख मित्रों में भट्टमात्र का नाम आता है। राज पुरोहित त्रिविक्रम और वसुमित्र थे। मंत्री भट्टि और बहसिंधु थे। सेनापति विक्रमशक्ति और चंद्र थे।


महाभारत के युद्ध के बाद वैदिक धर्म का दिया लगभग बुझ गया था हल्का सा टिमटिमा मात्र रहा था इस युद्ध के बाद भारत की वीरता, कला, साहित्य, संस्कृति सब कुछ मिट्टी में मिल गयी थी उस युद्ध के लगभग ५५०० वर्ष बीत गए, लेकिन उस काल जैसा प्रबल योद्धा ओर राजा भारत को आज तक नही मिला था।


भारत मे इतिहास 3000 वर्ष का सृंखला बद्ध नही है इसकी एक ही वजह है योग्य शासको का यहां अभाव हुआ है और जियोनिस्टो द्वारा इतिहास भी गायब किया गया है।


ऐसा भी एक समय आया बौद्ध जैन अहिंसक के भारत मे खूब बढ़ फल फूल रहा थे सारे हिन्दू ही "अहिंसा परमोधर्म " वाला बाजा बजा रहे थे।


विदेशों से हमले हो रहे थे ओर हम बुद्ध की अहिंसा में पंगु होकर बैठ गये भारत के अस्ताचल से सत्य सनातन धर्म के सूर्य का अस्त होने को चला था प्रजा दुखी थी, विदेशी शक,हूण,कुषाण शासकों के आक्रमणों से त्राहि त्राहि मची थी ऐसे महान विपत्तिकाल में " धर्म गौ ब्राह्मण हितायतार्थ " की कहानी को चरितार्थ करने वाला प्रजा की रक्षा करने वाला, सत्य तथा धर्म का प्रचारक वीर पराक्रमी विक्रम सेन पैदा हुए।


इस देश का ऐसा कोई व्यक्ति नही, जिसने वीर विक्रम की वीरता और उदारता की कहानियां न सुनी हो सम्राट विक्रम कैसे थे,

इसका वर्णन एक गुणाढ्य कवि की इन पंक्तियों में मिलता है -

🌹श्लोक🌹

स पिता पितृहनिनामवन्धुनामं स बान्धव।

अनाथानामं च नाथं सः प्रजानाम् कः सः नामवत।।

महावीरोप्यभदराजा स भीरू परलोकतः।

शुरोपिशाचरचण्डकरः कुभतापर्यङ्गनप्रियः।।

🌹अर्थ🌹

वह पितृहीनो का पिता,भातृहीनो का भाई, ओर अनाथों का नाथ था वह प्रजा का क्या नही था ?? ।। महावीर होने पर भी वह परलोक से डरता था शुर होने पर भी वह प्रचंडकर नही था यही सब कारण है, की 2000 साल बाद भी हम उनके गुणों की चर्चा करते नही अघाते।


शकों के काल मे भारत की स्थिति क्या थी इसका वर्णन आप इस श्लोक से समझ सकते है -


🌹श्लोक🌹

ये त्वया देव निरता , असुरा येच विष्णुना

ते जाता मल्लेछरूपेण पुनःरथ महीतले।

व्यापादयन्ति ते विप्रान धांति यज्ञादकाकीय 

हरन्तिमुनिकन्यास पापां की की न कुर्वते ।

भूलोका देवलोकास्चय शश्वदाप्यायते प्रभो ।।

🌹अर्थ🌹

हे विष्णुदेव आपने जिन असुरों का वध किया है, वे धरती पर मलेक्षरूप धरकर पुनः प्रकट हो गए है वे ब्राह्मण और मुनि कन्याओं को भगाकर ले जाते है उनका दुष्कर्म करके उनकी हत्या कर देते हैं वे पापी क्या क्या अत्याचार नही करते??


ध्यान दें उक्त बातें शक ओर हूण हमलों की याद ताजा करने के लिए है यह लोग आज के ISIS से भी ज़्यादा बर्बर होते थे आज भारत की कुछ जातियां खुद को इनका वंशज होने का कहने में शर्म भी महसूस नही करती ।।


जब भारत मे इस तरह की हाहाकार मची थी तब विष्णुजी ने पुकार सुनी गुणाढ्य कवि ने एक जगह लिखा है की भारत की यह दुर्दशा देखकर स्वयं शिवजी ने विक्रमादित्य विक्रम का अवतार धरकर पृथ्वी पर जन्म लिया इनके पराक्रम का अंदाजा इस बात से लगा सकते है की जावा सुमात्रा तक के सुदूर देशों तक इन्होंने अपने सेनापति नियुक्त कर रखे थे।


(यह वर्णन काव्यात्मक शैली में है जो गुणाढ्य कवि ने किए उस समय की स्तिथि को बताने हेतु आप इसको आलंकारिक समझें)


मथुरा जीतने के पश्चात ईन्होंने शकों को भारत से निकालने की ठानी कालिदास की इस पंक्ति से उनके सैन्यबल का पता चलता है-


🌹श्लोक🌹

यस्यापाष्टदश योजनानि कटके पादातिकोटित्रियम।

वाहानामयुतायुतंच नेवते।।

🌹अर्थ🌹

3 करोड़ पैदल सेना 90,000 हाथी 4 लाख नॉकाएँ थी।


उत्तर पश्चिमी शकों का मान मर्दन करने के लिए मुल्तान के पास जागरूर नाम की जगह पर महाराज विक्रम और शकों के भयानक युद्ध हुआ था विशेषकर राजपुताना के उत्तरपश्चिमी राज्य में शकों ने उत्पात मचा रखा था । मुल्तान में विक्रम की सेना से परास्त होकर शक जंगलो में भाग गए उसके बाद इन्होंने फिर कभी आंख उठाने की हिम्मत नही की लेकिन उनकी औलादे जरूर फिर से आती रही।


बुद्ध अहिंसा के प्रबल प्रचार से अयोध्या नगरी लगभग सुनी हो गयी ओर बौद्धो के गढ़ श्रावस्ती में हलचल लगी रहती थी अयोध्या तो जैसे सुनी बीहड़ हो चुकी थी आर्य धर्म का ध्वजवाहक श्रीराम जन्मभूमि की यह अवस्था कैसे देख सकता था ?

सरयू ने नदी के तट पर स्नान करके विक्रम ने प्रतिज्ञा की

" जिन बौद्धो ने अयोध्यानगरी का सर्वनाश किया है अगर उसी तरह मेने श्रीवस्ती को तहस नहस नही कर दिया तब तक मैं चैन से नही बैठूंगा "

विक्रम ने अपनी मल्ल सेना लेकर श्रावस्ती के बौद्ध राजा पर धावा बोल दिया ओर बौद्ध राजा को मार श्रावस्ती का विध्वंस कर दिया ओर अयोध्या का पुनः उद्धार कर उसे पुनः कौशल की राजधानी बनाया।

वाराणसी के बौद्ध राजा को मार विक्रम ने ब्राह्मणों को भी साफ संदेश दिया कि वह नास्तिक बौद्ध धर्म की जगह केवल सनातन धर्म का प्रचार करें इन्होंने ही बनारस के शिव मंदिर का भी पुनः निर्माण करवाया था।


विक्रमादित्य के काल के सिक्कों पर " जय मालवाना लिखा होता था विक्रमादित्य के मातृभूमि से प्रेम से इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है सिक्को पर अपना नाम न देकर अपनी मातृभूमि का नाम दिया।।


विक्रमादित्य का हम जहां भी वर्णन पाते है पूरे राज्य के कार्य वहीं करते है युद्ध मे वह सेना का संचालन करते थे बाद में राजदरबार में न्यायमूर्ति बनकर बैठते थे विक्रम के पिता एक साधारण मांडलिक के राजा थे जबकि विक्रम ने जावा सुमात्रा को भी अपने गणतंत्र में मिलाया था।


महाराज विक्रम की गाथा वेताल की कहानियों के कारण काल्पनिक सी लगती है लेकिन वास्तविकता ये है कि प्राचीन काल मे प्रत्येक राजा तंत्र का ज्ञाता अवश्य होता था। तंत्र का अर्थ है तकनीक और योजना किसी कार्य को कम से कम समय और कुशलता से करने की विद्या तंत्र के अंतर्गत आती है। ओर वह प्रकांड तांत्रिकों की संगत में हमेशा रहता था। पटना का वैताल एक महातांत्रिक था और विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक था वह महातांत्रिक तो क्या स्वयं में एक महाशक्ति था।


आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था


भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे ।


रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया


विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे।


हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे,


उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है ।


महाराज विक्रमादित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया


उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है


विक्रमादित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे , आप गूगल इमेज कर विक्रमादित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।


हिन्दू कैलंडर भी विक्रमादित्य का स्थापित किया हुआ है


आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।


कई बार तो देवता (श्रेष्ठ ज्ञानी व्यक्ति) भी उनसे न्याय करवाने आते थे ,विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था विक्रमादित्य का काल प्रभु श्रीराम के राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी ।


🌹विक्रमादित्य का शासन🌹


विक्रमादित्य का शासन अरब तक फैला था। विक्रमादित्य के बारे में प्राचीन अरब साहित्य में वर्णन मिलता है। विक्रमादित्य की प्रतिद्वंद्विता रोमन सम्राट से चलती थी।


महान सम्राट विक्रम ने रोम के शासक जुलियस सीजर को भी हराकर उसे बंदी बनाकर उज्जैन की सड़कों पर घुमाया था तथा बाद में उसे छोड़ दिया गया था।


कारण था कि उसके द्वारा यरुशलम, मिस्र और सऊदी अरब पर आक्रमण और विक्रम संवत के प्रचलन को रोकना।


बाद में रोमनों ने विक्रम संवत कैलेंडर की नकल करके रोमनों के लिए एक नया कैलेंडर बनाया जिसको ईसाई धर्म की उत्पत्ति के बाद ईसाइयों ने ईसा कैलेंडर बना लिया।ज्योतिर्विदाभरण अनुसार (ज्योतिर्विदाभरण की रचना 3068 कलि वर्ष (विक्रम संवत् 24) या ईसा पूर्व 33 में हुई थी) विक्रम संवत् के प्रभाव से उसके 10 पूर्ण वर्ष के पौष मास से जुलियस सीजर द्वारा कैलेंडर आरंभ हुआ, यद्यपि उसे 7 दिन पूर्व आरंभ करने का आदेश था। विक्रमादित्य ने रोम के इस शककर्ता को बंदी बनाकर उज्जैन में भी घुमाया था (78 ईसा पूर्व में) तथा बाद में छोड़ दिया। रोमनों ने अपनी इस हार को छुपाने के लिए इस घटना को बहुत घुमा-फिराकर इतिहास में दर्ज किया जिसमें उन्हें जल दस्युओं द्वारा उनका अपहरण करना बताया गया तथा उसमें भी सीजर का गौरव दिखाया है।


विक्रमादित्य के काल में अरब में यमन, इराक में असुरी, ईरान में पारस्य और भारत में आर्य सभ्यता के लोग रहते थे।


यह 'असुरी' शब्द ही 'असुर' से बना है। इराक के पास जो सीरिया है, वह भी असुरिया से प्रेरित है।


विक्रमादित्य के काल में दुनियाभर के ज्योतिर्लिंगों के स्थान का जीर्णोद्धार किया गया था। कर्क रेखा पर निर्मित ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख रूप से थे मक्का के मुक्तेश्वर (मक्केश्वर), गुजरात के सोमनाथ, उज्जैन के महाकालेश्वर और काशी के विश्वनाथ बाबा। माना जाता है कि कर्क रेखा के नीचे 108 शिवलिंगों की स्थापना की गई थी।यदि हम मक्का और काशी के मध्य स्थान की बात करें तो वह तो अरब सागर (सिंधु सागर) में होगा लेकिन सोमनाथ काज्योतिर्लिंग को बीच में मान सकते हैं और कर्क रेखा से सभी शिवलिंगों की बात करें तो इसराइल से लेकर चीन तक के बीच में उज्जैन के महाकालेश्वर को माना जा सकता है। कर्क रेखा के आसपास 108 शिवलिंगों की गणना की गई है।विक्रमादित्य ने नेपाल के पशुपतिनाथ, केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों को फिर से बनवाया था। इन मंदिरों को बनवाने के लिए उन्होंने मौसम वैज्ञानिकों, खगोलविदों और वास्तुविदों की भरपूर मदद ली।


नेपाली राजवंशावली अनुसार नेपाल के राजा अंशुवर्मन के समय (ईसापूर्व पहली शताब्दी) में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नेपाल आने का उल्लेख मिलता है। विक्रमादित्य के समय ज्योतिषाचार्य मिहिर, महान कवि कालिदास थे।


बौद्ध, मुगल, अंग्रजों के नष्ट करने के बाद भी राजा विक्रम की महानता का भारत की संस्कृत, प्राकृत, अर्द्धमागधी, हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला आदि भाषाओं के ग्रंथों में विवरण मिलता है। उनकी वीरता, उदारता, दया, क्षमा आदि गुणों की अनेक गाथाएं भारतीय साहित्य में भरी पड़ी हैं।


🌹विक्रमादित्य के नव रत्न🌹


अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया पर महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्य पुस्तकों में नहीं है जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके जियोनिस्ट धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे जिसमे बीरबल नाम गुलाम मंत्री को विजयनगर साम्राज्य के महान प्रकांड मंत्री तेनालीराम से कॉपी करके पेस्ट किया गया है।


राजा विक्रमादित्य की राजसभा के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन ????


राजा विक्रमादित्य की राजसभा में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि,विद्वान,गायक और गणित के प्रकांड पंडित सम्मिलित थे जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था चलिए जानते हैं वो कौन थे :-


🌹१.धन्वन्तरि🌹


ज्योतिष कुंडली की भविष्यवाणी में इन्हें बहुत ही महान आयुर्वेद का राजवैद्य बताया गया था इसलिए इनके माता पिता ने इनका नाम भगवान धन्वंतरि के नाम पर रखा था।


महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में इनका प्रमुख स्थान गिनाया गया है इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।


🌹२.क्षपणक🌹


जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है ये संन्यासी थे इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।


🌹३.अमर सिंह🌹


ये प्रकाण्ड विद्वान थे बोध-गया के वर्तमान बदले गए बुद्ध मन्दिर से प्राप्त एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है।


उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता कहा गया है अर्थात यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान पण्डित बन जाता है।


🌹४.शंकु🌹


इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान माना गया है।


🌹५. वेताल भट्ट🌹


विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।


🌹६. घटखर्पर🌹


जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है।


मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।


🌹७.कालिदास🌹


ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राण प्रिय कवि थे उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी ईसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया।


संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया जो भी हो कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।


🌹८. वराहमिहिर🌹


भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है इनमें-‘बृहज्जातक‘,सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।


🌹९. वररुचि🌹


कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।


इनके नाम पर मतभेद है क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि,सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि हुवे हैं।


अर्थात जियोनिस्टो के सौजन्य से सम्पूर्ण इतिहास गायब किया गया है बहुत मुश्किल से इतना इतिहास प्राप्त हुआ है।


पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में हमारे स्कूलों कालेजों मे कोई स्थान नही है देश को अकबर बाबर औरंगजेब जैसै बलात्कारी दरिन्दो का इतिहास पढाया जा रहा है ।


विक्रमादित्य तो एक उदाहरण मात्र है , भारत का पुराना अतीत इसी तरह के शौर्य से भरा हुआ है | भारत पर विदेशी शासकों के द्वारा लगातार राज्य शासन के बावजूद निरंतर चले भारतीय संघर्ष के लिए येही शौर्य प्रेरणाएं जिम्मेदार हैं।


हम सबको इस महान सम्राट से प्रेरणा ले कर राष्ट्र व धर्म की रक्षा में उद्यत रहना चाहिए एवं हमारे गौरवपूर्ण इतिहास को जानना चाहिए।


चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य कौन थे?



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#जय_परमपिता_परमेश्वर 🕉🕉🌹🌹


#ॐ_सच्चिदानंद_परमात्मने_नमः 🕉🕉🌹🌹

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