भारत का इतिहास धर्म, आस्था, और वीरता से भरा हुआ है। ऐसे कई प्रसंग हैं जब महान विभूतियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर सनातन धर्म की रक्षा की। ऐसा ही एक पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंग जुड़ा है सोमनाथ मंदिर और आचार्य ब्रह्मभट्ट से।
सोमनाथ मंदिर: एक पवित्र धरोहर
सोमनाथ मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व अपार है। यह मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है और इसे चंद्रदेव (सोम) द्वारा निर्मित माना जाता है। प्राचीन काल से यह मंदिर अपनी भव्यता और दिव्यता के लिए प्रसिद्ध रहा है, लेकिन समय-समय पर इसे आक्रमणकारियों ने नष्ट करने का प्रयास किया।
1025 ई. में महमूद गजनवी का आक्रमण
1025 ईस्वी में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। उसके इस हमले का उद्देश्य केवल हिंदू धर्म के इस पवित्र स्थल को नष्ट करना नहीं था, बल्कि मंदिर में संचित अपार संपत्ति को लूटना भी था। गुजरात के तत्कालीन शासक भीमदेव प्रथम की सेना ने मंदिर की रक्षा के लिए संघर्ष किया, लेकिन अंततः गजनवी की विशाल सेना के सामने पराजित हो गए।
आचार्य ब्रह्मभट्ट की तंत्रविद्या और बलिदान
जब महमूद गजनवी मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने वाला था, तब वहां के राजगुरु आचार्य ब्रह्मभट्ट ने एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान किया। उन्होंने तत्कालीन राजा से कहा कि वह विष्णु का अवतार है और शिवलिंग की दिव्य ऊर्जा को उनके शरीर में स्थापित कर रहे हैं। इसके पश्चात उन्होंने राजा से वहां से प्रस्थान करने का आग्रह किया।
जब गजनवी मंदिर में आया, तो आचार्य ब्रह्मभट्ट ने उससे कहा कि यदि वह अपने हथियार (गुर्ज) से प्रहार करना चाहता है, तो पहले उनके मस्तक पर वार करे। आचार्य को ज्ञात था कि मस्तिष्क में स्थित रक्त जिसे ‘ब्रह्मकपाली’ कहा जाता है, अत्यंत पवित्र होता है। यदि यह रक्त अभिषेक के रूप में प्रवाहित हो गया, तो शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा समाप्त हो जाएगी और वह मात्र एक साधारण पत्थर रह जाएगा। ऐसा होने पर गजनवी द्वारा मूर्ति को खंडित करने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
आचार्य ब्रह्मभट्ट ने अपने प्राणों की आहुति देकर धर्म की रक्षा की। उनकी इस महान आत्मबलिदान की गाथा आज भी सनातन धर्म के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाती है।
सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण
महमूद गजनवी द्वारा मंदिर को नष्ट करने के बाद भी यह स्थल कभी नष्ट नहीं हुआ। विभिन्न शासकों द्वारा इसे बार-बार पुनर्निर्मित किया गया। प्रमुख पुनर्निर्माण कार्य इस प्रकार हैं:
- 12वीं शताब्दी: राजा कुमारपाल (चालुक्य वंश) द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण।
- 1706: मुगल शासक औरंगजेब द्वारा मंदिर को पुनः ध्वस्त किया गया।
- 1951: स्वतंत्र भारत में सरदार वल्लभभाई पटेल और के. एम. मुंशी के प्रयासों से मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ।
आज सोमनाथ मंदिर उसी दिव्यता और भव्यता के साथ हिंदू धर्म की अमरता का प्रतीक बनकर खड़ा है।
सनातन धर्म की अजेयता
आचार्य ब्रह्मभट्ट का यह बलिदान हमें यह सिखाता है कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए व्यक्तिगत त्याग आवश्यक होता है। महादेव की कृपा और सनातन धर्म के अनुयायियों की निष्ठा ने सदियों से इस महान परंपरा को जीवित रखा है। यह गाथा केवल इतिहास नहीं, बल्कि हमारी आस्था और प्रेरणा का स्रोत भी है।
हर-हर महादेव! 🚩🔱
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