वैज्ञानिक बताते हैं कि सूर्य 4.5 अरब वर्षों में मर जाएगा. हिंदू धर्म में सूर्य देव हैं, तो क्या इसका मतलब है कि वह मर जाएंगे?
हमारा सूर्य एक जी-प्रारूप मुख्य-श्रेणी तारा (G-type main-sequence star) है। सूर्य की वर्तमान आयु ४.६ अरब वर्ष है। यह अभी अपनी मुख्य-श्रेणी की लगभग आधी आयु समाप्त कर चुका है, तथा इस श्रेणी में सूर्य आने वाले लगभग ५ अरब वर्ष तो रहेगा ही। इस श्रेणी के तारे हाइड्रोजन का हीलियम आदि भारी तत्वों में संलयन कर उर्जा का विकिरण करते हैं।
किन्तु ५ अरब वर्ष के उपरान्त भी सूर्य नष्ट नहीं होगा। अपितु यह सूर्य के कुल जीवन का लाखवें अंश जितना ही समय होगा।
सूर्य ने अपना जीवन लगभग शत-प्रतिशत हाइड्रोजन के साथ आरम्भ किया था। तथा वर्तमान समय में इसके घटक तत्वों का प्रतिशत यह है :
हाइड्रोजन (Hydrogen) 73.46%
हिलियम (Helium) 24.85%
ऑक्सीजन (Oxygen) 0.77%
कार्बन (Carbon) 0.29%
लौह (Iron) 0.16%
निऑन (Neon) 0.12%
नाइट्रोजन (Nitrogen) 0.09%
सिलिकॉन (Silicon) 0.07%
मेग्नीशियम (Magnesium) 0.05%
गंधक (Sulphur) 0.04%
(विकिपीडिया से)
जब सूर्य की हाइड्रोजन समाप्त होने लगेगी तब सूर्य नाभिकीय संलयन की अगली शृंखला में प्रवेश करैगा। तब सूर्य एक लाल दानवाकार (red giant) तारे का रूप ले लेगा। यह क्रम सूर्य की आयु लगभग ९.५ अरब वर्ष की होने पर आरम्भ होगा
इस स्थिति में हमारे सूर्य का आकार शनै-शनै बडा होकर बुध तथा शुक्र दोनों ग्रहों की कक्षा को पार कर लैगा। पृथ्वी ऐसी स्थिति में जीवन वहन करने योग्य नहीं रह पाएगी। यह स्थिति लगभग ५ अरब वर्ष रहेंगी।
लगभग १५ अरब वर्ष की आयु होने पर सूर्य में एक और परिवर्तन होगा। तब यह अपनी बाहरी परतें खो देगा और एक श्वेत वामन (white dwarf) तारे का रूप धारण कर लेगा। इस स्थिति में नाभिकीय संलयन से बहुत कम उर्जा बनेगी, किन्तु पहले हुए संलयन की उर्जा सूर्य धीरे-धीरे खोने लगेगा और चमकता रहेगा।
इस स्थिति के बाद अनुमान है कि लगभग १२ करोड़ वर्ष तक सूर्य ट्रिपल-अल्फा प्रक्रिया (triple-alpha process) से हीलियम का कार्बन में संलयन कर वर्तमान आकार का दसवां अंश होने तक सिकुड़ जाएगा। तब सूर्य की चमक अब से लगभग ५० गुना हो जाएगी और तापमान वर्तमान तापमान से कुछ कम। इस स्थिति में सूर्य लाल पुंज (red clump) का आकार लेकर कुछ प्रसरित हो जाएगा तथा १० करोड़ वर्ष इस स्थिति में बिताएगा।
(तारों का जीवन चक्र — सूर्य नीचे से दूसरे पथ का पथिक है : विकिपीडिया से साभार)
यह हीलियम के संलयन की समाप्ति है। इसके उपरान्त सूर्य का पुनः प्रसार होगा। अब यह स्पर्शोन्मुखी-दैत्याकार शाखा (asymptotic-giant-branch) में प्रविष्ट होगा। दो करोड़ वर्ष इस अवस्था में सूर्य अत्यधिक असंतुलित हो जाएगा तथा सूर्य का द्रव्यमान तेजी से घटने लगेगा। सूर्य अब लाल-दैत्याकार शाखा (red-giant branch) में होगा और पृथ्वी की वर्तमान कक्षा तक विस्तार कर लेगा।
तत्पश्चात यह planetary nebula बनकर अपनी बाहरी सतह खोने लगेगा। तथा लगभग पाँच लाख वर्ष में सूर्य का द्रव्यमान वर्तमान द्रव्यमान का आधा ही रह जाएगा। लगभग दस हजार वर्ष में इस नेबुला का द्रव्य छितर जाएगा और इस नए श्वेत वामन के रूप में सूर्य खरबों (अंग्रेजी में ट्रिलियन्स — trillions) वर्षों तक रहेगा। और परिकल्पना है कि इसके उपरान्त भी यह कृष्ण-वामन (black dwarf) का रूप लेकर रहेगा।
इसका तात्पर्य यह है कि सूर्य आने वाले खरबों वर्षों सूर्य अपनी विभिन्न अवस्थाओं में चमकता रहेगा। अभी तो सूर्य एक शिशु ही है।
अब हमारे सूर्य देवता के बारे में बात करते हैं। पौराणिक परम्परा में उनकी भी मृत्यु सुनिश्चित है।
विष्णुपुराण के प्रथम अंश के तीसरे अध्याय में काल-गणना दी गई है, जो इस प्रकार है :—
चन्द्रमा का पूर्णिमा से पूर्णिमा तक आने का समय लगभग ३० दिन का है। इसी ३० अंक के आधार पर दिन को भी ३० भागों में (१५ रात्रि के तथा १५ सूर्योदय से सूर्यास्त तक के) विभक्त किया, इस काल को एक मुहूर्त कहा गया। एक मुहूर्त का ३०वां भाग एक कला तथा एक कला का ३०वां भाग एक काष्ठा कहा गया है। इस एक काष्ठा के पन्द्रहवें भाग को एक निमेष कहा गया है।
काष्ठा पञ्चदशाख्याता निमेषा मुनिसत्तम ।।
काष्ठा त्रिंशत्कला त्रिंशत्कला मौहूर्तिको विधिः ॥८॥तावत्संख्यैरहोरात्रं मुहूर्तैर्मानुषं स्मृतम् ।
अहोरात्राणि तावानित मासः पक्षद्वयात्मकः ॥९॥तैः षड्भिरयनं वर्ष द्वेऽयनें दक्षिणोत्तरे ।
अयनं दक्षिणं रात्रिर्देवानामुत्तरं दिनम् ॥१०॥
इस गणना के अनुसार :
१ निमेष = एक मात्रा वाले वर्ण के उच्चारण में अथवा एक बार पलकें झपकाने में लगा समय। = ०.२१३३ सेकंड
१५ निमेष = १ काष्ठा = ३.२ सेकंड
३० काष्ठा = १ कला = १.६ मिनट
३० कला = १ मुहूर्त = २ नाडिका = २ घड़ी = ४८ मिनट
३० मुहूर्त = १ दिन और रात (दिवस)
१५ दिवस = १ पक्ष
३० दिवस = २ पक्ष = १ मास
६ मास = १ अयन = देवताओं की १ रात्रि अथवा दिन
२ अयन = १२ मास = १ वर्ष = देवताओं का एक दिन-रात = १ देव-दिवस
दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन माना है।
इसके आगे युगों की गणना है।
दिव्यैर्वर्षसहस्त्रैस्तु कृतत्रेतदिसंज्ञितम् ।
चतुर्युगं द्वादशभिस्तद्विभागं निबोध मे ॥११॥चत्वारि त्रीणि द्वै चैकं कृतादिषु यथाक्रमम् ।
दिव्याब्दानां सहस्त्राणि युगेष्वाहुः पुराविदः ॥१२॥तत्प्रमाणैः शतैः सन्ध्या पूर्वा तत्राभिधीयते ।
सन्ध्यांशश्चैव तत्तुल्यो युगस्यानन्तरो हि सः ॥१३॥सन्ध्यासध्यांशयोरन्तर्यः कालो मुनिसत्तम ।
युगाख्यः स तु विज्ञेयः कृतत्रेतादिसंज्ञितः ॥१४॥कृतं त्रेता द्वाररश्च कलिश्चैव चतुर्युगम् ।
प्रोच्यते तस्तहस्त्र च ब्रह्मणो दिवसं मुने ॥१५॥ब्रह्मणो दिवसे ब्रह्मन्मनवस्तु चतुर्दश ।
भवन्ति परिमाणं च तेषां कालकृतं श्रृणु ॥१६॥
३६० देव-दिवस = ३६० वर्ष = १ दिव्य वर्ष
१२,००० दिव्य वर्ष = १ चतुर्युग = ४३,२०,००० वर्ष
७१ चतुर्युग = १ मन्वंतर = ३०,६७,२०,००० वर्ष
१,००० चतुर्युग = ब्रह्मा का एक दिन = १४ मन्वंतर + ६ चतुर्युग का समय = ४,३२,००,००,००० (चार अरब बत्तीस करोड़ मानव-वर्ष) = १ कल्प है।
टिप्पणी :
एक चतुर्युग में ४,००० दिव्य-वर्षों का सत युग, ३,००० दिव्य-वर्षों का त्रेता युग,२,००० दिव्य वर्षों का द्वापर युग, तथा १,००० दिव्य वर्षों का कलि युग है तथा इनके पूर्व और पश्चात की युगसन्ध्याओं को मिला कर १ चतुर्युग का समय होता है।
सप्तर्षयः सुराः शक्रो मनुस्तत्सूनवो नृपाः ।
एककाले हि सृज्यन्ते संह्रियन्ते च पूर्ववत् ॥१७॥चतुर्यगुणां संख्याता साधिका ह्रोकासप्ततिः ।
मन्वन्तरं मनोः कालः सुरादीनां च सत्तम ॥१८॥अष्टौ शत सहस्त्राणि दिव्ययां संख्यया स्मृतम् ।
द्विपत्रचाशत्तथान्यानि सहस्त्राण्यधिकानि तु ॥१९॥त्रिंशत्कोट्यस्तु सम्पूर्णाः संख्याताः संख्याया द्विज ।
सप्तषष्टिस्तथान्यानि नियुतानि महामुने ॥२०॥विंशतिस्तु सह्स्त्राणि कालोऽयमधिकं विना ।
मन्वन्तरस्य सड्खयेयं मानुषैर्वत्सरैर्द्विज ॥२१॥चतुर्दशगुणो ह्योष कालो ब्राह्ममहः स्मृतम् ।
ब्राह्मो नैमित्तिको नाम तस्यान्ते प्रतिसत्र्चरः ॥२२॥तदा ही दह्राते सर्वं त्रैलोक्यं भूर्भुवादिकम् ।
जनं प्रयान्ति तापार्था महर्लोकनिवासिनः ॥२३॥
एक मन्वंतर की अवधि में सप्तर्षि, सुरगण, इन्द्र (शक्र), मनु आदि सभी समाप्त हो जाते हैं। इस के अंत में तीन (भू, भुव, स्व) लोक जल कर नष्ट हो जाते है और केवल महर्लोक के वासी शेष रहते हैं।
टिप्पणी :—
इससे यह भी स्पष्ट है कि इन्द्रादि सुर अमर नहीं हैं। एक निश्चित कालावधि के उपरान्त पुराणों में उनके अंत की संकल्पना है।
एकार्णवे तु त्रैलोक्ये ब्रह्म नारायणात्मकः ।
भोगिशय्यां गतः शेते त्रैलोक्यग्रासबृंहितः ॥२४॥जनस्थैर्योगिभिर्देवाश्चिन्त्यमानोऽब्जसम्भवः ।
तत्प्रमाणां हि तां रात्रिं तदन्ते सृजते पुनः ॥२५॥एवं तु ब्रह्मणो वर्षमेवं वर्षशतं च यत् ।
शतं हि तस्य वर्षाणां परमायुर्महात्मनः ॥२६॥एकमस्य व्यतीतं तु परार्द्ध ब्रह्मणोऽनघ ।
तस्यान्तेऽभून्महाकल्पः पाद्य इत्यभिविश्रुतः ॥२७॥द्वितीयस्य परार्द्धस्य वर्तमानस्य वै द्विज ।
वाराह इति कल्पोऽयं प्रथमः परिकीर्तितः ॥२८॥
एक समुद्र में तीन लोकों के ब्रह्म जो शेषशायी नारायण के साथ हैं, एक रात्रि (जिसका परिमाण दिन की अवधि के समान है) विश्राम कर पुन: नया त्रिलोक रचते हैं। जो फिर से दिन के ढलते ही समाप्त हो जाता है। ऐसे ३६० ब्रह्मा दिन-रात की अवधि ब्रह्मा का एक वर्ष है। ऐसे सौ वर्षों (परार्ध) में ब्रह्मा की आधी आयु समाप्त हो जाती है। तथा दो परार्ध = १ महाकल्प में ब्रह्मा की आयु समाप्त होती है।
१ परार्ध = ३६,००० × २ कल्प = ७२,००० कल्प = १५,५५,२०,००,००,००,००० वर्ष
१ महाकल्प = २ परार्ध = ३१,१०,४०,००,००,००,००० वर्ष
इस अवधि में ब्रह्मा की आयु पूर्ण होने के साथ ही ब्रह्मा का भी अन्त होगा। तथा सूर्य देवता का भी इस अवधि में अन्त होना निश्चित है।
यह अवधि लगभग ३११ ट्रिलियन (३११० खरब) वर्ष है।
अन्य पुराण भी इस तथ्य को थोडे अंतर से वर्णित करते हैं।
सूर्य के जीवन चक्र तथा पुराणों में वर्णित तथ्यों दोनों में कुछ साम्यताएँ हैं। दोनों में सृष्टि का जीवनकाल सीमित है, तथा परिमाण (order of magnitude) भी लगभग समान प्रतीत होता है। दोनों स्थितियों में एक चक्र है, जिसमें क्रमशः सूर्य के विस्तार और संकुचन का चक्र जिस प्रकार सौरमण्डल के आन्तरिक ग्रहों को प्रभावित करेगा उसी प्रकार से ब्रह्मा की सृष्टि के जल कर समाप्त होने और पुनर्निर्माण के चक्र भी परिकल्पित हैं। किन्तु पुराणों में यह काव्यात्मक अभिव्यक्ति है और वैज्ञानिक अपनी शोध से ज्ञात तथ्यों के आधार पर अनुमान करते हैं।
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