क्या हो अगर समुन्द्रों का पानी ताज़ा हो जाए तो ।
What if the sea water becomes fresh?
क्या हो अगर समुन्द्रों का पानी ताज़ा हो जाए तो ।
इक्कीसवीं सदी में, आपको साफ पानी के लिए इतने दूर जाने की ज़रूरत नहीं है । पर फिर भी, इसकी सप्लाई में कमी आ रही है ।
क्या हो अगर हमे पानी के कंनजपसन के बारे मे चिंता न करनी पडे? क्या हो अगर एक कुँए और एक बीच की सैर एक जैसी हो ?
आप पढ रहे हैं ‘‘क्या हो अगर’’ और ये है क्या हो अगर सारे समुन्द्रों का पानी ताज़ा हो जाए तो ।
महासागरों का पानी इतना नमकीन क्यो है?
ऐसा हमेशा से नहीं था । करीब 3.8 बिलियन साल पहले, पृथ्वी कि सतह इतनी ठंडी हो चुकी थी कि भाप पानी बन जाती थी, जिसमे नमक नहीं मिला होता था । ये सच है ! काफी लम्बे समय पहले, महासागरों का पानी बिलकुल ताज़ा था । पर हमेशा ऐसा नहीं रहने वाला था ।
जब भी बारिश होती है, हवा में से कार्बन डाइऑक्साइड गिरते पानी में घुल जाता है । इससे बारिश का पानी थोड़ा एसिडिक हो जाता है और जब वो गिरता है, तो चट्टानों को काटने लगता है । ये बारिश का पानी पास की नदियों और नालो में जाता है, अपने साथ कई साल्ट्स और मिनरल्स ले कर । और यहाँ से, ये नदियों से बह कर महासागरों में मिल जाता है ।
इसमें और भी कई तरह के साल्ट्स और मिनरल्स मिला लें जो हाइड्रोथर्मल वेंट्स या सबमरीन ज्वालामुखियों से बाहर निकलते हैं और फिर सोचें कि ये सारी प्रक्रिया 3.8 बिलियन साल से लगभग लगातार हो रही है । इससे बहुत ज़्यादा नमक बन गया ।
असल में, महासागरों में इतना ज़्यादा नमक है कि अगर आप उसे पृथ्वी कि सारी ज़मीन पर बराबर बिछा दें, तो ये एक 40 मंजिला नमक कि इमारत के बराबर होगा । और शायद ऐसा किसी कारण से है ।
महासागरों का ताज़ा पानी भगवान के किसी आशीर्वाद जैसा लगता है । एक बिना नमक का समुद्र समुंद्री जीवन को बर्बाद कर देगा और हमारे मौसम और तापमान को असर पहुचायेगा, जिससे पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन असंभव न हुआ तो बहुत मुश्किल ज़रूर हो जायेगा ।
महासागरों मे लगभग 228450 तरह की प्रजातिया है और करीब 2 मिलियन और प्रजातियों की खोज अभी होनी है ।
पर अगर महासागर नमकीन न रहे, तो हम उन्हें कभी नहीं खोज पाएंगे । समुंद्री मछली, और अन्य महासागरीय जीव ऐसे बने हुए हैं की वे नमकीन पानी पीकर हाइड्रेटेड रह सकते हैं और अतिरिक्त नमक से छुटकारा पा सकते हैं । सभी समुंद्री जीव ऐसा नहीं करते, पर अतिरिक्त नमक को बाहर निकाल देना महासागर में रहने के लिए बहुत ज़रूरी है | कुछ प्रजातियाँ, जैसे सैलमन, ताज़े और नमकीन पानी दोनों में रह सकती है पर ज़्यादातर समुंद्री जीव ख़त्म हो जायेंगे । इसमें पानी के निचे एलगी भी शामिल हैं, जो आप यकीन करें या न करें, पृथ्वी पर आधे से ज़्यादा फोटोसिंथेसिस करते हैं ।
फोटोसिंथेसिस हमारे ग्रह को ऑक्सीजन सप्लाई करने में एक अहम भूमिका निभाता है क्यूंकि पेड़ पौधे अट्मॉस्फेयर में से कार्बन डाइऑक्साइड को हमारे सांस लेने लायक हवा में बदलते हैं । तो एलगी के बिना, न सिर्फ हमें कम ऑक्सीजन मिलेगी, बल्कि हमारे वायुमंडल में ज़्यादा कार्बन डाइऑक्साइड भी हो जाएगी ।
इससे ग्रीन हाउस इफेक्ट और ज़्यादा हो जायेगा जो विश्व के कुछ भागों को बहुत गर्म बना देगा । आप इक्वेटर रेखा के पास ज़रूर बहुत अधिक गर्मी पाएंगे, क्यूंकि हमारे महासागरों की करंट्स अब उतना गर्म पानी और हवा सर्कुलेट नहीं करेंगी जैसा वे करती थीं ।
कन्वेक्शन करंट्स इक्वेटर रेखा से गर्म पानी को दूर नार्थ तक ले जाने में मदद करती हैं जबकि नार्थ का ठंडा पानी नीचे साउथ की गर्म जगहों को ठंडा करता है । इक्वेटर रेखा पर गरम पानी ज़्यादा नमक ले जा सकता है, तो ये गाढ़ा पानी नीचे डूब जाता है जबकि ठंडा पानी उसके ऊपर बहता है । और काफी दूर नार्थ में पानी इतना ठंडा हो जाता है की वो जम जाता है और समुंद्री बर्फ बन जाता है ।
पानी जमने की वजह से नमक पीछे छूट जाता है और कुदरती रूप से, ये नार्थ के ठंडे पानी को गाढ़ा बना देता है, जिससे वो नीचे डूब जाता है और साउथ से आने वाले गर्म पानी के लिए जगह बन जाती है । नमक के बिना, ये सारी प्रक्रिया नहीं हो पायेगी ।
पृथ्वी के दोनों छोर जम जायेंगे जबकि इक्वेटर रेखा के पास मौसम बहुत ज़्यादा गर्म हो जायेगा । तूफान और ज़्यादा आने लगेंगे और पहले से ज़्यादा ख़तरनाक होंगे । उस समय, हमारा मौसम और जलवायु भी बहुत अलग होंगे ।
हम ये सब देखने के लिए कब तक ज़िंदा रहेंगे ?
ज़्यादा नहीं ! आप या तो जम जायेंगे, या बहुत गर्मी या किसी प्राकृतिक दुर्घटना में, या फिर भूख से मर जायेंगे । कम फोटोसिंथेसिस होने की वजह से, और जलवायु जो की या तो बहुत ठंडे होंगे या बहुत गर्म, हमारा मौसम अलग अलग तरीके से पेड़ पौधों का पोषण नहीं कर पायेगा ।
सारी फूड चैन टूट जाएगी, काफी प्रजातियां, जिनमे मनुष्य भी होंगे, ख़त्म हो जाएँगी क्यूंकि फसलें, जो हमारे जीने के लिए ज़रूरी हैं, ख़त्म हो जाएँगी । तो, जब हम कहते हैं की महासागरों का नमकीन होना ज़रूरी है, तो इसका मतलब नमक के एक कण से न लें । बेशक, हम वैज्ञानिक तरीकों का सम्मान करते हैं, तो विश्व और उसके स्वभाव, ज़मीन या आसमान, पर सवाल करते रहिये,
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