गुड़ के गुण का जवाब ही नहीं
सर्दियों का मौसम गुड़ की मिठास से और दिलफरेब हो जाता है । इन दिनों देश के कई क्षेत्रों में गुड़ से तैयार होने वाली मिठाइयों का कोई जोड़ नहीं।शीतकालीन पर्व - त्योहारों में इनकी मिठास घुलजाती है सबके मुंह में ...
बचपन में जब सुना ' गूंगा गुड़ को रस अंतर्गत ही भावै ' तब से हम यही पहेली बुझाते रहे हैं कि गुड़ में तेज देहाती मिठास के अलावा आखिर क्या ' रस ' होता है भला ? अब जीवन संध्या में यह समझ आने लगा है कि ईख की मिठास का सत्व गुड़ में ही बसता है और गंवई समझी जाने वाली इस मिठास में कितने सारे गुण हैं ! डॉक्टरों का मानना है कि यह अपरिष्कृत शक्कर है और स्वास्थ्य के लिए मिल वाली ' रिफाइंड ' चीनी से कहीं कम नुकसानदायक । इसमें शरीर को निरापद रखने वाले खनिज यथेष्ठ मात्रा में रहते हैं और गुड़ जमाने के पहले गन्ने के रस की जो तरल ' राब ' खौलाई जाती है वह शहद को मात देती नजर आती है । विदेशी खान पान विशेषज्ञ इसकी तुलना मेपल सीरप से करते है ।
स्वाद अनेक पर जरिया एक
माघ -पूस में गुड़ से बने पदार्थों का खास पारंपरिक माहात्म्य है । पंजाब में गुड़ के पराठे , गुड़ के चावल गुड़ का हलवा तथा तिल फुग्गे तो उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड आदि में तिलकुट चाव से खाए जाते हैं । पूर्वांचल के लोकप्रिय ठेकुआ का जादू भी घी के साथ जुगलबंदी करता गुड़ ही जगाता है । लोहड़ी के उल्लास वाला , मकर संक्रांति की आभा वाला यही मौसम है गुड़ की पट्टी , गुड़ की गजक और गुड़ की रेवड़ियों का आनंद लेने का ! पट्टी का जरा परिष्कृत रूप है चिक्की । महाराष्ट्र , कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में इन्हीं दिनों ' मीठा - मीठा खाओ और मीठा - मीठा बोलो ! ' नारे के साथ तिलगोल खाते - खिलाते हैं । पूरन पोली भी इस पूरे इलाके में पर्व - उत्सव पर बनाए जाने वाला व्यंजन है , जिसमें सारा खेल गुड़ , चने की दाल की पीठी तथा घी का नजर आता है । तमिलनाडु में सक्कराई पौंगल हमारी जुबान पर मिठास घोलता है तो केरल में परप्पुपायसम तथा खीर जैसे दूसरे पकवानों की जान भी गुड़ ही होता है ।
गुड़ पर मौसम का टीका
इसी तरह बंगाल में प्रकट होता है नया नूतन या नलिन गुड़ । ताड़ के पेड़ से निकाले जाने वाले रस को नीरा कहते हैं पर सूरज की किरणें पड़ने के साथ ही इसमें खमीर चढ़ने लगता है और दोपहर तक यह मादक ताड़ी / कल्ल में बदल जाता है । खजूर के गुड़ का रंग और स्वाद चॉकलेटी होता है । ' खेजूर गुडेर पायोश ' के अलावा इससे नाजुक सौंदेश , जौलभोरा तथा कोड़ा पाक ( तनिक सख्त ) तैयार किए जाते हैं । जयनगर का मौआ मुरमुरे से बनाया जाता है और इसी मौसमी गुड़ की चाशनी इसे असाधारण बनाती है । ओडिसा , असम तथा अन्यत्र भी तरह - तरह के पीठे और मोदक बनाने के लिए गुड़ का ही इस्तेमाल होता है , चीनी का नहीं ।
स्थानीयता की मीठी जंग
उत्तर भारत में मेरठ - मुजफ्फरनगर के पड़ोस वाला इलाका गुड़ के उत्पादन और थोक व्यापार के लिए विख्यात है । शौकीन लोग अपने लिए मसाले वाला गुड़ बनवाते हैं , जिसमें सौंफ , अदरक , काली मिर्च , इलायची आदिडाले जाते हैं । इसे बड़ी - बड़ी भेलियों / डलों में नहीं वरन चपटी बड़ी बरफियों की शक्ल में तराशा जाता है । गुड़ उत्पादन का दूसरा बड़ा केंद्र कोल्हापुर है । यहां के गुड़ उत्पादकों का दावा है कि स्थानीय गुड़ उत्तर भारत के गुड़ से श्रेष्ठ होता है । यही हठ तमिलनाडु और कर्नाटक के गुड़ उत्पादक भी पालते हैं । दक्षिण भारत में गुड़ को वेल्लम् कहते हैं । इसका उपयोग मिष्ठान्नों में ही नहीं बल्कि दाल , सब्जी आदि में इमली की खटास को काटने के लिए भी किया जाता है । गुजराती दाल , कढ़ी में भी अदृश्य गुड़ अपना जलवा दिखलाता है ।
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