कृषि कानूनों की वापसी
तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री ने जिस तरह यह कहा कि शायद हमारी तपस्या में कुछ कमी रह गई होगी . जिसके कारण दीये के प्रकाश जैसा सत्य हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए , उससे यही स्पष्ट होता है कि यह मजबूरी में लिया गया फैसला है । इस फैसले ने फिर यह साबित किया कि लोकतंत्र में सही फैसले लेना और लागू करना कितना मुश्किल होता है । इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और कोई नहीं कि जो फैसला किसानों के हित में था और जिससे उनकी तमाम समस्याएं दूर हो सकती थीं , उसे संकीर्ण राजनीतिक कारणों से उन दलों ने भी किसान विरोधी करार दिया , जो एक समय वैसे ही कृषि कानूनों की पैरवी कर रहे थे , जैसे मोदी सरकार ने बनाए । यह शुभ संकेत नहीं कि संसद से पारित कानून सड़क पर उतरे लोगों की जिद से वापस होने जा रहे हैं । यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भविष्य में ऐसा न हो , अन्यथा उन तत्वों का दुस्साहस ही बढ़ेगा , जो मनमानी मांगें लेकर सड़क पर आ जाते हैं । लोकतंत्र में लोगों की इच्छाओं का सम्मान होना चाहिए , लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जोर - जबरदस्ती को जनाकांक्षाओं का नाम दे दिया जाए । यह बिल्कुल भी ठीक नहीं कि किसानों और खासकर छोटे किसानों का भला करने वाले कृषि कानून सस्ती राजनीति की भेंट चढ़ गए । इन कानूनों की वापसी किसानों की जीत नहीं , एक तरह से उनकी हार है , क्योंकि वे जहां जिस हाल में थे , वहीं खड़े दिखने लगे हैं । अब इसमें संदेह है कि किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को तय समय में हासिल किया जा सकेगा । कृषि कानूनों की वापसी के अप्रत्याशित फैसले को भले ही आगामी विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा हो , लेकिन लगता यही है कि इसके मूल में उन तत्वों की सक्रियता भी एक बड़ा कारण रही , जो कृषि कानून विरोधी आंदोलन में सक्रिय होकर कानून एवं व्यवस्था के लिए चुनौती बन रहे थे । लाल किले में हुए उपद्रव से लेकर दिल्ली - हरियाणा सीमा पर मजदूर लखबीर सिंह की हत्या तक की घटनाओं की अनदेखी नहीं की जा सकती । यह किसी से छिपा नहीं कि किसान नेताओं ने इन घटनाओं में लिप्त तत्वों की किस तरह या तो अनदेखी की या फिर दबे छिपे स्वरों में उनका बचाव किया । यह भी खेद की बात रही कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी निराश किया । अब जब सरकार यह है कि वह कुछ किसानों को सही बात समझा नहीं पाई , तब फिर उसे कारणों पर गौर करना होगा , जिनके चलते ऐसी नौबत आई । यह इसलिए आवश्यक है , क्योंकि उसे सुधारों का सिलसिला कायम रखना है । मान रही
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