सम्राट बिम्बिसार कौन थे?
बिम्बिसार(544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शाशक था। उसने हर्यक वंश की स्थापना की। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ' गिरिव्रज ' (राजगृह ) को अपनी राजधानी बनाया था। उसने वैशाली, कौशल, पंजाब से वैवाहिक संबंध स्थापित करके अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े प्रशयदाता थे।
जीवन परिचय:-
बिम्बिसार का जन्म 558 ई. पू. हुआ था। वो पंद्रह वर्ष की आयु में राजा बने थे और अपने पुत्र अजातशत्रु के लिए राज्य का त्याग करने से पहले उन्होंने 52 वर्ष राज किया। प्रसेंजीत की बहन और कौशल की राजकुमारी ' महाकोशला ' इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माता थी।' क्षेमा ' , ' सिलव ' और ' जयसेना ' नमक इनकी अन्य पत्नियां थीं। विख्यात वीरांगना अंबापली से इन्हें विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था। बिम्बिसार बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। उनकी एक पत्नी बौद्ध विक्षुनी बं गई थी।
महावग्ग के अनुसार बिन्दुसार की 500 रानिया थी। उसने अवंती के शक्तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना संबंध बनाया। सिंध के शासक रुद्रायन तथा गांधार के मुक्कु प्रगति से भी इनके दोस्ताना संबंध थे। इन्होंने अंग को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया था।
अंत समय:-
बिम्बिसार का अन्त बड़ा दारुण हुआ। ज्योतिषियों की इस भविष्यवाणी के बाद भी कि उनका पुत्र अजातशत्रु उनके लिए अशुभ सिद्ध होगा, उन्होंने उसे बड़े लाड़-प्यार से पाला। बुद्ध को बिम्बिसार द्वारा दिए गए प्रश्रय से देवदत्त बहुत द्वेष करता था और उसी के दुष्प्रभाव में आकर अजातशत्रु ने अपने पिता की हत्या का षड्यन्त्र रचा, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और धूमिल हो गई। षड्यन्त्र का पता चलने और पुत्र की राज्य लिप्सा की तीव्रता को देखकर बिम्बिसार ने स्वयं ही राज्य-त्याग कर दिया और अजातशत्रु राजा बन गया। परन्तु देवदत्त द्वारा पुन: उकसाए जाने पर नए राजा ने बिम्बिसार को बन्दी बना लिया।
पुत्र का अत्याचार:-
बिम्बिसार को केवल भूखा रखकर ही मारा जा सकता था। उन्हें एक गरम कारागार में भूखा रखा गया। 'महाकोशला' (अजातशत्रु की माँ) के अतिरिक्त किसी को उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी। पहले महाकोशला अपने परिधान में एक सुवर्ण-पात्र में भोजन छिपाकर ले गई। उसका पता चलने पर वे अपने पाद-त्राण में भोजन छिपाकर ले गई। उसका भी पता चल गया तो उन्होंने अपने शिरो-वस्र (मोलि) में भोजन छिपाकर ले जाना चाहा। उसका भी पता चल गया तो वे सुगंधित जल में स्नान करके, अपनी देह को मधु (शहद) से लेपकर गई, जिससे वृद्ध राजा उसे चाट ले और बच जाएँ। लेकिन अन्तत: इसका भी पता चल गया और उनका भी प्रवेश निषेध कर दिया गया।
मृत्यु
इतना सब कुछ सह कर भी चल-ध्यान योग से बिम्बिसार जीवित रहे। जब पुत्र को पता चला कि पिता यूँ सरलता से प्राण-त्याग नहीं करेंगें तो उसने कारागार में कुछ नाइयों को भेजा। बिम्बिसार ने सोचा कि अंतत: पुत्र को अपनी भूल का अनुभव हुआ और वह पश्चाताप कर रहा है। अत: उन्होंने नाइयों से अपनी दाढ़ी और बाल काटने को कहा ताकि वे भिक्षुवत जीवन-यापन कर पाऐं। किंतु नाइयों को इसलिए भेजा गया था ताकि वे बिम्बिसार के पैरों को काटकर उनके घावों में नमक और सिरका डाल दें और तत्पश्चात् उन घावों को कोयलों से जला दें। इस प्रकार बिम्बिसार का चल-ध्यान रोक दिया गया और वे दु:खद मृत्यु को प्राप्त हुए।
तो यह थी मगध के प्रथम सम्राट और हर्यंक वंश के संस्थापक बिम्बिसार की कहानी।
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